नमस्ते,

अत्यंत दुखी हृदय से आज आपकी टी वी पर गौ माँस पर चर्चा सुनी। मुख्य रूप से आपने जो प्रश्न किया कि स्वामी विवेकानंदजी ने कहा है कि यदि ब्राह्मण राजा एवं सन्यासी एकत्रित हों तो वहाँ गौ माँस खाना चाहिए अन्यथा ब्राह्मण ब्राह्मण नहीं कहलाएगा।

मेरा सारा जीवन वेदाध्ययन एवं योगाभ्यास में बीता है। थोड़ा में अपना परिचय दूँ कि बाबा रामदेव ने मुझे अपने साथ मिलाने का निमंत्रण दिया जो मैंने विनयपूर्वक अस्वीकार किया क्योंकि में अधिकतर एकांतवासी हूँ। मैंने चारों वेदों का अध्ययन किया है, 29 पुस्तकें (अग्रेज़ी और हिन्दी दोनों में) लिखी है जो देश विदेश और आर्य समाज में भी प्रचलित हैं।

मैंने सभी मज़हबों के साथ विवेकानंदजी का भी अध्ययन किया। वे वर्तमान के वेदान्त के वक्ता थे। उन्होने वेदों का अध्ययन नहीं किया और न ही वेदों पर कोई पुस्तक लिखी। इसलिए उनका गौ माँस खाने अथवा मछ्ली आदि खाने में कहना प्रामाणिक नहीं है, पूर्णतः अप्रमाणिक है क्योंकि चारों वेद, 6 शास्त्र, 11 उपनिषद्, शतपत् ब्राह्मण ग्रंथ, निघण्टु, वाल्मीकि रामायण और महाभारत जैसे वेदों पर आधारित सत्य ग्रन्थों में जिनका मैंने अध्ययन किया, इन सब में “अहिंसा परम धर्म है” ऐसा उपदेश है और “वर्जेत मधु मांसाम् च” अर्थात माँस व नशा वर्जित है, ऐसा उपदेश है।

स्वामी विवेकानंदजी का आधुनिक वेदान्त पूर्णतः वेद विरुद्ध है जिसे वेद के विद्वान नहीं मानते और शेष जो मानते है उन्हे मानने का पूर्ण अधिकार है। वेदान्त में केवल यह कहा जाता है कि, “अहम् ब्रह्म् अस्मि” कि जीव ही ब्रह्म है। इसे अद्वैतवाद कहते हैं।

परंतु ईश्वर से उत्पन्न चारों वेदों में त्रैतवाद है अर्थात जीव, परमेश्वर व प्रकर्ति, यह तीन पदार्थ अनादि व अविनाशी माने जाते हैं, जो पिछले दो-ढाई हज़ार वर्षों में मनुष्यों के बनाए मजहब और वर्तमान के वेदान्त में भी यह वैदिक त्रैतवाद नहीं माना जाता।

क्या सच है क्या झूठ है, इसके लिए योग शास्त्र सूत्र 1/7 और कपिल मुनि कृत सांख्य शास्त्र सूत्र 5/51 के अनुसार अपने विचार के पक्ष में वेद मंत्र का प्रमाण देना आवश्यक है। यही नियम अनादिकाल से चला आ रहा है जो वर्तमान में साधु-संतों आदि ने नज़रअंदाज़ करके अपना अप्रमाणिक विचार और वेद विरुद्ध विचार भोली जनता पर थोप दिया। जैसे माँस भक्षण वेद में अपराध कहा है परंतु आज श्री डी एन झा जैसे अनेक वेद विरोधी व वेद ज्ञान ताल ठोककर, वेदों का नाम लेकर मिथ्यावाद फैला रहे हैं कि वेदों में माँस खाने की आज्ञा है। यह नितांत निंदनीय वाणी है। यदि ऐसे लोग विद्वान के साथ बैठ कर वार्तालाप करें तो इनका झूठ पकड़ा जाएगा, अन्यथा नहीं।

अतः जी संत ने वेद नहीं पढ़े, जिसमें माँस और मदिरा, जुआ इत्यादि सब दोषों से दूर रहने का उपदेश है, वह कुछ भी लिखने में स्वतंत्र है। परंतु जब वेद कि बात आएगी, जो विश्व कि संस्कृति है और जो अब भारतीय संस्कृति के नाम से जानी जा रही है, तब वेद कि निंदा, जो साक्षात ईश्वर कि निंदा है, उसे टी वी इत्यादि पर सुनकर, दिल मार कर और दुख के आँसू पीकर रह जाते हैं। परंतु दिल से निकली आह बेकार नहीं जाती, ईश्वर वेद के निंदकों को माफ नहीं करता, ऐसा वेद में कहा है।

वस्तुतः “इस घर को आग लग गई घर के चिराग से” कि काम-क्रोध, लोभ और धन संग्रह करने और स्वार्थपूर्ति के लिए आज हिन्दू कहलाने वाले लाखों साधु-संत और मनुष्य टी वी पर वेद विरुद्ध जहर उगल रहे हैं। इन्हे अपनी, वेदाध्ययन का त्याग करने वाली, अज्ञानयुक्त बुद्धि से वेद विरुद्ध भाषण देने से रोकने का कर्तव्य सरकार का है परंतु जब सरकार में ही नेता-मंत्री आदि वेद के तनिक भी ज्ञान को नहीं जानते तो तब अपनी वैदिक संस्कृत को बचाने के लिए हम कहाँ जाये, किससे अपना दुख कहें?

मेरी वैबसाइट पर मुसलमान भाइयों के अनगिनत प्रश्न आते रहते हैं और समाधान होता रहता है। उन्हे हम अपनी पुस्तकें भी भेजते है और वे श्रद्धा से पढ़ते है। मेरी वैदिक सी डी में मेरे भजन-प्रवचन भी वे सुनते है। परंतु ऐसी तू-तू मैं-मैं की लड़ाई और शोरगुल जो वर्षों से टी वी पर चल रहा है, ऐसा हमारे साथ कुछ नहीं हुआ। एक क्या कई मुसलमान भाइयों ने मुझे लिकया कि वेद में माँस खाना लिझा है। तब मैंने उन्हे प्रमपूर्वक कई वेदमन्त्र लिखे, जिसमे माँस मदिरा सेवन निषेध है। अभी हफ्ते भर पहले भी किसी ने यही प्रश्न किया था कि विवेकानंदजी ने माँस खाने कि इजाज़त डी है तो मैंने उनका वेद वाणी से शंका समाधान किया। आप मेरी वैबसाइट पर पढ़ सकते है।

तो ऊपर मुसलमान भाई ने अंत में मुझे लिखा कि मनुष्य के ऊपर के, आगे के जो दाँत हैं (canines), वो ईश्वर ने मांस खाने के लिया दिये हैं, उन्होने मुझे प्रेम से लिकया की या तो आप किसी वेदमन्त्र का प्रमाण दें जिसमें इन दोनों नुकीले दाँतो का वर्णन भी हो और इनसे माँस खाने के लिया मना किया गया हो।

अथर्ववेद मंत्र 6/140/1 में कहा – (यौ व्याघ्रौ) जो दाँत मेरे भेड़िये के समान (अवरूठौ) उत्पन्न हुए (पीतरम् मातरम् च जिघत्सत:) पिता व माता को खाना चाहते हैं/मांसाहारी होना चाहते हैं, हे (जातवेद:) सर्वव्यापक (ब्रहमणसपते) वेद ज्ञान के स्वामी, परमेश्वर (तौ दंतौ) हमारे उन दांतों को (शिवौ कृणु) कल्याणकारी कीजिये उनमे मांसाहार की प्रवृत्ति ही न हो।

भाव यह है की हमारी ऊपर नीचे दोनों दातों की पंक्तियाँ मांसाहार से दूर रहे, हमें भेड़िया न बना दे।

क्षमा करें आपसे हमें यह भी शिकायत है की आप स्वामी विवेकानंदजी के विचारों को इस तरह प्रस्तुत कर करे दे कि आपने शायद उन विचारों पर अपनी स्वीकृति और श्रद्धा कि मोहर लगा दी हो।

तनिक व्यास मुनि कृत महाभारत ग्रंथ से कुछ विचार देखें:
माँस कि उत्पत्ति वीर्य से होती है अतः माँस भक्षण में महान दोष है और माँस न खाना पुण्य बताया गया है। जो हिंसा नहीं करता उसका तप कभी नस्ट नहीं होता, इत्यादि।

यजुर्वेद में कहा कि राजा और राजनेता वेद के ज्ञाता होने चाहिए और यह क्रम पिछले युगों में राजा दशरथ, जनक, हरिश्चंद्र, श्रीराम, मनु इत्यादि असंख्य राजाओं ने निभाया था। परंतु आज हम दु:खी हैं कि भारतवर्ष में पिछले 68 वर्षों में कोई भी नेता वेद का ज्ञाता नहीं है और यही अशांति का कारण है।

मैं एकांत वासी हूँ, अधिकतर पब्लिक में नहीं आता और न मेरा राजनीति से कोई संबंध है। परंतु मैं पिछले 68 वर्षों से प्रत्येक सरकार में अपनी भारतीय संस्कृति, मुख्यतः चारों वेदों का पतन देख-देखकर सहमा और दुखी अवश्य रहता हूँ।

इस विषय में मुझे गालिब का यह शेर लिखना अच्छा लग रहा है:
“बस के दुश्वार है
हर काम का आसाँ होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं
इंसा होना।“1

वस्तुतः यह बात ईश्वर ने यजुर्वेद 40/3 में भी समझाई है कि जब आदमी जन्म लेता है तो वह आदमी ही होता है। जब वह धार्मिक शुभ कर्म करता है तो वह देवता कहलाता है और जब वह धर्म के मार्ग से भटक जाता है और काम, क्रोध, लोभ आदि में फँसकर पाप कर्म करता है तो उसे राक्षस कहते हैं, अर्थात जन्म आदमी का लेकर आया था पर उसे आदमी होना भी नसीब न हुआ, विपरीत में पापयुक्त होकर राक्षस बन गया।

सारांश यह है कि आज मानवता के टुकड़े होते जा रहे हैं। अतः यदि हम मानवता का कल्याण चाहते हैं और इसे एक सूत्र में बांधना चाहते हैं तो जैसा ऊपर कहा, सभी मनुष्यों के धार्मिक गुरुओं को बैठकर, प्रेमपूर्वक तर्क-संवाद-विचार-विमर्श करके आपस में भाईचारा और सौहार्द का वातावरण बनाने का मार्ग ढूंढना होगा।

कभी श्री डी एन झा ने गौ हत्या के विषय में कोई पुस्तक आदि लिखी थी जिसके विरुद्ध ईश्वर कृपा से मैंने अग्रेज़ी भाषा में एक पुस्तक लिखी है जिसमें श्री झा के एक एक भाव का वेद मंत्र का प्रमाण देकर खंडन किया है। यदि आप अपना पता भेजें तो यह किताब में आपको भेजूँगा। किताब का नाम है – “Protect the Holy Cow – say Vedas”