Anonymous: एक धर्मग्रन्थ को पढ़कर मुझे यह ज्ञात हुआ है कि पति का सम्मान किया जाना चाहिए और यदि वह गलत भी हो तो पत्नी को उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए। और वैसे ही पत्नी के बारे में भी कहा (पत्नी का सम्मान किया जाना चाहिए और उसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए)। अगर यह सच नहीं है तो क्या यह नियम सिर्फ पति पर लागू होता है? क्या कोई पक्षपात है?
स्वामी राम स्वरूप: बेटी, ईश्वर कभी पक्षपात नहीं करते। ये तो आपने त्रेता युग में लिखी वाल्मीकि रामायण पढ़ी है और उस समय पृथ्वी पर केवल वेद ही वेद का प्रकाश था, इसलिए वेदों के आधार पर और राजा दशरथ जिनका परिवार वेदों के अनुसार जीवन व्यतित करता था वाल्मीकि जी ने वैसा ही लिखा दिया लेकिन जब हम चारों वेदों का अध्ययन करते हैं तो मालुम होता है कि पत्नी वेद विरुद्ध विचार वाली है या पति वेद विरुद्ध गलत विचार वाला है, घर में कलह होती है तो दोनो को एक सा दंड दिया जाता है ऐसा वेदों में कहा है। मैं यहाँ दंड के विषय में नहीं लिख सकता क्योंकि लेख बहुत लंबा हो जाएगा।

Anonymous: शास्त्रों में कई स्थानों पर उल्लेख पुत्र के रूप में किया गया है, न कि पुत्री के रूप में। क्या यह कोई पक्षपात है? आपने अपनी किताब Vedas – A Divine Light तो ये लिखा है कि ईश्वर ने स्त्री और पुरुष दोनो को समान अधिकार के साथ भेजा है। तो फिर हर संदर्भ में पुरुष को क्यों प्राधान्य दिया गया है?
स्वामी राम स्वरूप: बेटी बात तो ज्ञान और अज्ञान की है। वाल्मीकि रामायण में चारों वेदों का ज्ञान नहीं है, हाँ जो कुछ भी वाल्मीकि जी ने लिखा है वो सत्य है क्योंकि वे एक ऋषि थे और ईश्वर के समान थे। आज दुनिया उन्हें भूल गई है ये हमारा दुर्भाग्य है।

वेद का ज्ञान ना सुन के कारण पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं होता। जैसा कि वेद में कहा कि जीवात्मा ना स्त्री है, ना पुरुष है, जीवात्मा जिस जिस शरीर में जाती है वैसे वैसे ही बोली जाती है। जैसे कि चिड़िया के शरीर में गई तो चिड़िया, नारी के शरीर में गई तो नारी, पुरुष के शरीर में गई तो पुरुष। परन्तु जीवात्मा का लिंग वेद ने पुरुष लिंग कहा है तो इसलिए वेदों ने उसे पुत्र ही कहा है, भेद तो शरीर का है।

Anonymous: आपने आपकी किताब Vedas – A Divine Light में कहा कि अगर किसी लड़की या महिला को आपके आश्रम आना है तो उसे अपने पिता या पति के साथ आना है (अगर ये दोनों ही अनुमति नहीं देते हैं या दोनों नहीं जाना चाहते हैं तो बेटी और पत्नी भी नहीं जा सकते)। दोनों का कितना भी दिल हो कि वो वहाँ आकर आचार्य से ज्ञान ले (दूसरी बात वेद में ईश्वर ने वेद को पढ़ने के लिए मना किया है सीधा…आप उसे किसी ज्ञानी आचार्य से ही सुन सकते हैं …) तो अब वो ऐसी परिस्थिति में कुछ नहीं कर सकती ना?

स्वामी राम स्वरूप: बेटी, वेद ने गुरु और शिष्य के संबंध के लिए ये कहा है कि वेदों का ज्ञाता आचार्य पितामह होता है और शिष्य, शिष्या उसके बेटा-बेटी होते हैं। यदी ये सच्चा संबंध किसी को समझ में आ जाता है तो वो बेटा-बेटी, नर-नारी गुरु से ज्ञान लेने के लिए अपने गुरु – आचार्य (केवल वेदों और अष्टांग योग विद्या के विद्वान) के पास निर्भय होकर माता-पिता से आज्ञा लेकर गुरु के पास जा सकते हैं। ऐसे बेटा-बेटी हमारे पास बहुत आते हैं और वैदिक ज्ञान और अष्टांग योग विद्या का ज्ञान ले जाते हैं।