गुप्त: गुरुजी को दंडोत्वत चरण स्पर्श! क्या परिस्थिति या हालत व्यक्ति को मजबूर कर सकते हैं? सुना है इन्सान परिस्थिति और हालत का दास होता है। क्या यह सही है? मेरा लक्ष्य कर्ज निवारण हेतु इनसे जुझता और सामना करता रहा और वैदिक पूजा भी करता रहा। आपकी कृपा से अंतोगत्व लक्ष्य ब्रह्म प्राप्ति है। तो मुझे जानना है, आप कहतें हैं कि यज्ञ में माफी मिल जाती है, तो दोनों रास्तों के साथ-साथ जीना चाहिए या totally वेद मार्ग पर चलना चाहिए? गुरुजी, इस भ्रम को मिटाओ।
स्वामी राम स्वरूप: मेरा आपको हार्दिक आशीर्वाद बेटा, सुखी रहो। इन्सान परिस्थिति और हालात में तब मजबुर होता है जब वो वैदिक मार्ग पर ना चलता हो क्योंकि फिर तो प्रारब्ध में जो लिखा है उसे वही भोगना पड़ता है। लेकिन सही मायने में जब इन्सान वेद मार्ग पर चलता है, गुरु की सेवा करके ज्ञान प्राप्त करता है, विद्या को आचरण में लाता है, तब प्रारब्ध बदल जाता है और तब मनुष्य के सब पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। दु:ख की जगह सुख प्राप्त होने लगता है। दोनों रास्ते नहीं होते बेटा, केवल वेद ही इन्सान को गुणवान बनाकर देवता बना देता है। लेकिन इसके लिए कठोर वेदाध्यान, योगाभ्यास की आवश्यकता होती है जो विद्वान गुरु के बिना नहीं होती।
गुप्त: प्रभु शत शत नमन. क्या संध्या हवन सूर्य अस्त के बाद कर सकते हैं?
स्वामी राम स्वरूप: मेरा आपको हार्दिक आशीर्वाद बेटी, सुखी रहो। संध्या हवन सूर्यास्त के बाद कर सकते हो। उससे प्रभु की पूजा का लाभ मिलेगा। परंतु सूर्यास्त से पहले हवन/यज्ञ करने से हवन कुंड में डाली आहुतियों का धुआँ जिसे सोम कहते हैं, वे सूर्य की किरणों और हवा के साथ तीनों लोको में फैलकर शुद्धिकरण करता है और जीवों को सुख देता है। वो पुण्य घट जाएगा।
सुविधा: प्रणाम महाराज जी! महाराज जी, राजा दशरथ वेदों के मार्ग पर चल कर ही सभी कार्यों को करते थे पर उन्होनें फिर तीन विवाह क्यों किए थे? क्या इसलिए की उनको संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी?
स्वामी राम स्वरूप:मेरा आपको आशीर्वाद, बेटी! हाँ। बेटी, तीन विवाह इसलिए भी किये थे कि संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी।
Suheal: Maharaj ji koti pranaam. Your holiness has cited in various writings that hard practice of ashtang yoga is required for Samadhi. May kindly throw some light on what constitutes hard practice of Ashtang Yoga. Pranaam
Swami Ram Swarup: मेरा आपको हार्दिक आशीर्वाद बेटा! Hard practice means daily शुभ-कर्म, यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि योग के आठ अंगों का अभ्यास करना और वह भी दो तीन घंटों तक करना। कभी ब्रेक न करना। यज्ञ करने के लिए यदि ब्रेक हो जाये तो कोई बात नहीं क्योंकि यज्ञ ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ पूजा है। अष्टांग योग भी ईश्वर की पूजा और यह भी सोचना चाहिए कि यज्ञ करने के बाद यदि समय लगा सके योग साधना में तो वह भी लगाएं।