Swamiji conducting Yajyen – May 06, 2020 in evening

सामवेद का भी बड़ा पुण्य है। मन्त्रों के हिसाब से सबसे छोटा वेद है पर हर ऋषि मुनि इसको सबसे बड़ा कह गए हैं। श्री कृष्ण ने भी कहा कि कि वेदों में मैं सामवेद हूँ – वेदानां सामवेदोऽस्मि (श्रीमद् भगवद्गीता १०/२२)। चार वेद हैं। श्री कृष्ण महाराज चारों वेदों के ज्ञाता थे। वह बता रहे हैं कि मुझे सबसे ज्यादा प्रिय सामवेद है। वह खुद वेदों में सामवेद नहीं हैं। चारों वेदों में सबसे ज्यादा जो मुझे प्रिय वेद लगता है वह सामवेद है। 

ना जाने कितने ऋषि मुनि इस भूमि पर आए और चले गए। कुछ ब्रह्मलीन है जो ईश्वर के साथ हैं। हर समय उनकी जीवात्मा ईश्वर के साथ है। जिन्हे मुक्ति नहीं मिल पाई, कोई तपस्या में कमी रह गई, उनका फिर जन्म हुआ और उन्होंने ही वह कमी पूरी करी और फिर ब्रह्मलीन हुए।

यह भूमि ऋषियों की भूमि है। यह ऋषियों  से ओतप्रोत रही है। ये सदा एकांत में बसने वाले थे। अब सारा भूगोल बदल गया है। सब कुछ बदल गया है। अब इतने ऋषि-मुनि रहे भी नहीं हैं और जो है उनकी दुर्गति है। उन पर लोग कमांड चलाते हैं। अब सारा माहौल बदल गया है। उसी के अनुसार कर्म भी हेरफेर हैं। 

कर्मों का फल भोगना पड़ता है। उस समय भी न श्रीराम को बख्शा। केकई की वजह से श्रीराम को जंगलों में बहुत कष्ट उठाने पड़े और श्रीकृष्ण महाराज तो एकता बनाने के लिए इस भारत भूमि पे दर-दर मारे फिरे। जो मांडलिक राजा विरोधी हो जाते थे, उन्होंने नीति बनाई और श्रीकृष्ण के बहुत शत्रु पैदा हुए। उनके ऊपर तो यादवों  ने आक्रमण ही कर दिया था। अगर वो वहाँ अपनी राजधानी द्वारका से भाग कर जान नहीं बचाते तो यादवों ने उनको नहीं छोड़ना था। 

अब तो सारा भूगोल चेंज हो गया है। कौन जाने योगी, कौन जाने वेद और कौन जाने ज्ञान? आप लोग भी इस मार्ग पर चल रहे हैं, तो आपके साथ पिछले जन्मों का भी पुण्य है, और इस जन्म का पुरुषार्थ और पुण्य है जो आप वेद मार्ग पर चल रहे हैं। यह बड़ी ही आलोकिक बात है। 

अगर नहीं चल रहे तो नहीं चल रहे। अंदर कुछ और बाहर कुछ, यह तो भगवान जानता ही है। आप पाप छोड़ दो। पापी को भगवान बड़ी बुरी सजा देता है। काम, क्रोध, मद, लोभ, अहँकार – अगर विकार छोड़ोगे तो मरोगे थोड़ी? रोटी तो भगवान देगा ही देगा, साथ में ठीक मार्ग पर चलने का आपको पुण्य  मिल जाएगा। अगला जन्म फिर देवताओं के कुल में हो जाएगा, नहीं तो सोच भी नहीं सकते आप कि भिन्न-भिन्न योनियों में जाने से कितनी बुरी दशा आती है। 

बस पाप छोड़ दो आप। काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार, निंदा, द्वेष, चुगली, बदले की भावना, और ना जाने हजारों जीवन में विषय विकार है। नहीं तो यह स्वाहा स्वाहा भी लाठी बनकर बरसता है। यह मार्ग स्वच्छ होना चाहिए, साफ-सुथरा होना चाहिए। 

कई प्रश्न करते हैं कि इस जन्म में प्राप्ति हो जाएगी? यह असंभव सी बात है।  परंतु अगर थोड़ा थोड़ा भी ज्ञान आ जाए तो परेशानियां खत्म हो जाती हैं। हमने ज्ञान की दृष्टि से यह तो देखना है कि हमारा लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति है पर ईश्वर प्राप्ति जीवात्मा ने करनी है। जीवात्मा में चित्त है। मरने के बाद में यह मन, बुद्धि, चित्त जीवात्मा के साथ जाता है। चित्त  पर अच्छे बुरे संस्कार पड़े  होते हैं उसके अनुसार सुख दु:ख आता रहता है। यह गूढ़ ज्ञान समझना है। अगर हम जीवात्मा के बारे में समझे तो यह बार-बार समझना होगा कि यह ईश्वर के तरह अजर, अमर, अविनाशी है और स्वयंभू है। हम जीवात्मा है शरीर नहीं हैं। शरीर तो नष्ट होता है। यह प्रकृति की देन है। 

हम जीवात्मा हैं। हमें मोक्ष प्राप्त करना है। जो नियम है अगर वह हमें याद रहे कि बस यही जन्म  संभाल लो। ज्यादा जन्मों की जरूरत नहीं है। यह आपका वर्तमान जन्म महत्वपूर्ण है। इसमें अगर गुरु भक्ति नसीब हो जाए और उसमें आप विद्या सुने, सेवा करें और बस पाप छोड़ दें। पिछले जन्मों मैं चाहे खरबों के खरबों पाप किए हों, उनकी चिंता ना करें। वह तो ऐसे है कि जैसे एक रुई है वह अरबों साल की और खरबों टन बड़ी है। इसमें बस माचिस की तीली लगानी है। फिर देखो कितनी जल्दी जलकर राख होती है – ज्यादा से ज्यादा एक दो महीने में खत्म। ऐसे ही जब विद्या प्राप्त करते हो, यज्ञ करते हो और पाप छोड़ देते हो तो ईश्वर कृपा से खरबों पापों में एकदम से आग लगती है। 

जैसे एक कुशल मल्लाह नाव को समुद्र से निकालकर किनारे ले जाता है, ऐसे ही भगवान ने उस मंत्र में बता दिया है कि जो ठीक-ठीक भक्ति उपासना करता है उसको परमेश्वर इस भवसागर से निकाल  दे देता है। बस रास्ता चाहिए बस उस पर चलो।  यह नहीं समझना है कि इस जन्म में पाना है। इतने इतने जन्मों के पाप कहां से एक जन्म में खत्म करोगे। कितनी भक्ति करोगे? भक्ति आपके हाथ में नहीं है गुरू और परमेश्वर के हाथ में है। आपने तो मेहनत करनी है और चलना है। पाप करोगे तो पाप की सजा मिलेगी। पुण्य करोगे तो पुण्य मिलेगा। इस जन्म की बात नहीं करो। बात यह करो कि आपने अगला जन्म सँवार लिया है बस। आप जो हैं इस जन्म में पाप छोड़कर भक्ति में लग गए, ग्रहस्त्य के शुभ कर्म करें और फिर जब ६० साल से ऊपर, जब बच्चे सेटल हो गए, छोड़ो सब। यह मोह ममता छोड़ने नहीं देती तभी तो खरबों साल लग जाते हैं। इतने साल कई योनियों में इंसान डूब जाता है  इस मोह ममता के कारण मोक्ष मिलता ही नहीं है।

कई लोग समाधि अवस्था के विषय में प्रश्न पूछते हैं। जब तुम्हारी लग जाएगी तो आपके प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही मिल जाएगा। किसी भी गुरू ने समाधि के विषय में नहीं बताया है। अगर कोई ज्ञानवान हो तो उसे यह बात समझनी चाहिए योग विद्या दिखाने की नहीं होती है। देखो कितने साधु हैं वे दिखाते रहते हैं तो इसलिए उनकी समाधि नहीं लगती और न वो वेद की तरफ जा सकते हैं। अगर कोई योगी समाधि अवस्था के बारे में किसी अनाधिकारी को बताता है तो ईश्वर उसे रगड़ देता है। आप साधना के विषय में पूछो। आप आसन प्राणायाम के विषय में पूछो और आपका कोई और संशय उठता है तो उस बारे में पूछो। आप समाधि के विषय में मत पूछो तो ही भलाई है। यह तो करने की चीज है। 

तो आज मैंने फिर ज्ञान दिया है, हजारों बार दे चुका हूँ,  कि एक जन्म में मिल जाए, या नहीं मिल जाए, ऐसी बातें नहीं करनी है। यह जन्म तुम्हारे हाथ में है अगला जन्म तुम्हारे हाथ में नहीं है। पिछला तुम्हारा पाप पुण्य में बीत गया। अब तो यही जन्म तुम्हारे हाथ में है। अगर इसी जन्म में पाप छोड़ दोगे, इसी  जन्म में तुम्हें गुरु भक्ति नसीब हो जाए – बड़ी मुश्किल से होती है। सब कुछ त्याग के ही गुरू नसीब होता है। बस फिर अगला जन्म आपका सफल हो गया। वहाँ जन्म हुआ जहाँ पहले से ही वेद चल रहे हैं। फिर आगे के सारे जन्म देवयोनि में हैं और फिर कभी भी समाधि लग जाएगी। कभी भी ईश्वर प्राप्ति हो जाएगी। यह फंडामेंटल समझो। किसी को पता ही नहीं है इस फंडामेंटल का। बिरला किसी समाधिस्थ पुरुष को पता होगा, बाकी किसी को नहीं पता। 

मनुष्य को समझना चाहिए जो मैंने अभी समझाया।  वेद विद्या है। वेद विद्या से मूल्यवान वस्तु कुछ भी नहीं है।  यह विद्या, वेद के रहस्य, या तो ईश्वर के पास है और या एक योगी के पास है। विद्या से परे ना संसार में कोई सुख है, बिल्कुल नहीं है, यह हम जाने। विद्या ही हमारा सच्चा धन है। विद्या ही हमारा सुख है। विद्या ही हमारा मोक्ष है।  विद्या ही हमारा जीवन है। 

हम जीवात्मा हैं, शरीर को पा के हम लालच, मोह, लोभ, ममता, काम, क्रोध, में बुढ़ापे तक घुसे पड़े रहते हैं। हमने ईश्वर के विचार के अलग चलकर अपना अपना जीवन बर्बाद कर लिया। यह समझ के कि विद्या से बढ़कर काम, क्रोध, मद, लोभ, अहँकार है, रुपया पैसा है, सोना चांदी है। ऐसा होने पर ईश्वर दिन रात रगड़ रहा है। किसी को सुख नहीं दे रहा है। यह वाक्य ही कमाल के हैं। विद्या से परे भी कोई सुख है, ऐसा तुम ना समझो। बिल्कुल नहीं है। विद्या चाहिए तो धन आ जाएगा। धन चाहिए तो धन वर्तमान के कर्मों से शायद आ जाए पर विद्या नहीं आएगी और अगला जन्म बुरी योनिओं में होगा।

देवपूजा और संगतिकरण को समझो। संगतिकरण में विद्वान को प्रसन्न ही रखो। वह नाराज़ नहीं होना चाहिए। उसे सेवा से तृप्त कर दो। संतान में भी भक्ति के गुण होने चाहिएं। इसलिए माता पिता और संतान हो उनकों यह नियम याद  रखने चाहिए कि भक्ति के बिना सुख नहीं है।