गायत्री मंत्र को बोलने में आलस्य नहीं होना चाहिए, जितनी बार भी बोला जाता है। ईश्वर सभी को सुनता है इसलिए इसको भी सुनता है। जिस दिन कर्मों के हिसाब से इस गायत्री मंत्र की प्रार्थना को स्वीकार कर देगा तो आलोकिक बुद्धि हो जाएगी। यही तो इसमें है कि धियो यो न प्रचोदयात् यानि वेद की विद्या मेरी बुद्धि में प्रकाशित हो जाए। यह बहुत महान मंत्र है। कभी आलस्य मत करो। यह ऋषियों का प्यारा मंत्र है। हर ऋषि मुनि सुबह-शाम इसका जाप करता था क्योंकि वेद में खो जाने के बाद हर मंत्र की पहचान हो जाती है। गायत्री सर्वश्रेष्ठ है। ज्ञान आता है इसलिए की बुद्धि शुद्ध हो। तो यह प्रार्थना करते रहो।
नामकरण संस्कार
माधवी नाम का अर्थ है मधुर बोलने वाली। काव्या नाम का अर्थ है वेद जानने वाली।
हे बेटी! तू अमृत स्वरूप है। अजर, अमर अविनाशी और सुख स्वरूप है। सदा सुखी रहे। सूर्य के बनाए हुए हर महीने में हर दिन में प्रवेश कर। जब तक सूरज रहता है तू रहे। यानी तेरी आयु बहुत लंबी हो। यह सारे आशीर्वाद बेटी को वेद मंत्र के द्वारा दिए। ये गुरु के मुख से निकले लेकिन ये ईश्वर के आशीर्वाद हैं।
ये सारा ज्ञान थोड़ा-थोड़ा नोट करोगे तो अपनों का और बहुतों का भी कल्याण करोगे। ईश्वर कहता है कि जो जिज्ञासु हैं उनको यह ज्ञान सुनाओ।
ओ३म् प्र य आरुः शितिपृष्ठस्य धासेरा मातरा विविशुः सप्त वाणीः।
परिक्षिता पितरा सं चरेते प्र सर्स्राते दीर्घमायुः प्रयक्षे॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/७/१)
इस मंत्र में यह ज्ञान है कि शरीर में अग्नि ना हो तो यह शव हो जाए। जो यह ९८ डिग्री तापमान होता है यह मनुष्य को जिंदा रखता है। अग्नि की महिमा बता रहे हैं कि इसी से दीर्घायु प्राप्त होती है। इस अग्नि को जो ब्रहमचारी प्रदीप करते हैं उस के बल से तो उनकी लंबी आयु हो जाती है, बुद्धि प्रकाशित और ईश्वर प्राप्ति हो जाती है। ब्रह्मचर्य पालन जब करता है तो उसके अंदर विशेष जठर अग्नि प्रकट हो जाती है।
मैं सिर्फ उनको ज्ञान दे रहा हूं जो जिज्ञासु हैं। जो नहीं है उसके लिए ये ज्ञान नहीं है। जो आप सब में जिज्ञासु हैं तो बड़ी प्रसन्नता है। बीच में कोई जिज्ञासु नहीं है, आलसी है, संशय-आत्मा है, वह गलत है।
इस अग्नि की वजह से योगाभ्यास होता है। यह ब्रह्मचर्य की वजह से अंदर प्रकट होती है। जिसकी यह तीव्र होती है उसको एकदम भूख लगती है और एकदम हजम हो जाता है। ब्रह्मचर्य आदि करके बड़ी अवस्था को प्राप्त होते हैं। इसी अग्नि को प्रदीप करके ऋषि पद पाए जाते हैं। इसलिए ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखो। यज्ञ व अग्निहोत्र से ब्रह्मचर्य दृढ़ होता है। जबरदस्ती बुराइयों को निकालो फिर गुरु और परमेश्वर कृपा करके बुराइयों को निकाल देंगे। नहीं तो ये बुराइयाँ जीव को मार देंगी।.