स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल) (www.vedmandir.com)

ऋग्वेद मंत्र १/२२/१५ का भाव है कि ईश्वर ने यह पृथिवी मनुष्यों को अनेक प्रकार के सुख देने के लिए बनाई है जिसमें दुःख देने वाले कांटे आदि भी न हों। और यह पृथिवी हमें बहुत से रत्नों को प्राप्त कराने वाली होती है। वे सुख और रत्न आदि की प्राप्ति वेद मार्ग पर चलकर ही होती है। यजुर्वेद में ईश्वर ने शुभ कर्म करके सुख प्राप्त करने का ज्ञान दिया है। वस्तुतः अनेक प्रकार के शुभ कर्मों का ज्ञान वेदों में ईश्वर ने मनुष्यों को दिया। परन्तु यजुर्वेद मंत्र १/१ में यह ज्ञान दिया “वायव: स्थ व: श्रेष्ठतमाय कर्मणे प्रार्पयतु” अर्थात् हे परमेश्वर! हमारे प्राण, अन्तःकरण और इन्द्रियाँ, वे अत्यंत श्रेष्ठ यज्ञ कर्त्तव्य-कर्म जो है, उससे अच्छी प्रकार जुड़ी रहें अर्थात् हम नित्य यज्ञ कर्म करते रहें। मंत्र में ईश्वर ने यज्ञ को विश्व का सर्वश्रेष्ठ शुभ कर्म कहा है। मनन-चिंतन करने से ज्ञात होता है कि यदि कोई नित्य वेद मंत्रो से विधिपूर्वक यज्ञ करता रहे तो उसे विश्व के सभी शुभ कर्मों का ज्ञान हो जाता है और वह यजनीय पुरुष सम्पूर्ण जीवन में केवल शुभ करता है, अशुभ कर्मों का तो विचार भी नहीं करता।

ईश्वर ने ऋग्वेद में स्पष्ट कहा है कि विद्वानों से वेद विद्या सुनो। वेद विद्या सुने बिना मनुष्य ईश्वर को कभी प्राप्त नहीं कर पायेगा और ईश्वर भक्ति के बिना कभी सुख प्राप्त नहीं होता। उदाहरणार्थ – विश्व में आज “यज्ञ” शब्द बिरला किसी-किसी को समझ में आता है। “यज्ञ” शब्द का अर्थ है “देवपूजा संगतिकरण दानेषु इति यज्ञः।” देवपूजा में पाँच चेतन देव आते हैं जो पूजनीय हैं, वे ये हैं – माता, पिता, अतिथि, आचार्य और परमेश्वर। पूजनीय का अर्थ है आदर, मन-सम्मान, आदि करना।

यह समझना जरूरी है कि आज विश्व वेद न जानने के कारण, प्राय:, माता-पिता, अतिथि और आचार्य का आदर, मान-सम्मान नहीं करता और इस तरह पाप करता है। फिर ज्ञान कहाँ से आएगा? ज्ञानदाता तो आचार्य (वेदज्ञ गुरु) ही है। माता जन्म देती है इसलिए देवी, पिता, धन आदि द्वारा पालन-पोषण करता है अर्थात् धन देता है इसलिए वह देव, अतिथि कुछ न कुछ ज्ञान देता है इसलिए देव और आचार्य तो चारों वेदों का ज्ञान देकर मोक्ष प्रदान करता है, इसलिए वह देव कहलाता है। तो जब विद्वान से वेद सुनकर विद्या समझ में आएगी तभी तो मनुष्य ज्ञानवान् और पुण्यवान् बनेगा अन्यथा मूढ़ ही रह जाएगा। अतः ईश्वर की आज्ञा मानकर हम विद्वानों की शरण में रहकर, वेद सुनें और वेद की शिक्षा पर आचरण करें। इस प्रकार ग्रहस्थादि के शुभ कर्म करते-करते दुःखों और मृत्यु को जीत लें।