स्वामी राम स्वरुप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल)

प्रथम हमें यह जानने की आवश्यकता है कि वेद ईश्वर से उत्पन्न वाणी है किसी मनुष्य की नहीं। ईश्वर सत्य है इसलिए उसके द्वारा दी गयी वेद वाणी भी सत्य है। वेदों में ईश्वर ने अनंत विद्याओं का वर्णन किया है जैसे स्वास्थय, चिकित्सा, आर्मी, नेवी, आदि।

यह कटु सत्य किसी वेद के विद्वान से ही जाना जा सकता है। कई वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि यज्ञ से कीटाणुओं का नाश होता है। परन्तु आज मनुष्य ने वेद विद्या त्याग दी है और दुःखी है। यदि सभी राष्ट्र मिलकर अथवा हमारा देश ही अकेला यज्ञ करना प्रारम्भ कर दें तो हमारे देश सहित कई अन्य देश भी बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि ऐसा ईश्वर का कहना है यजुर्वेद के मंत्र १/२ में:

ओ३म् वसोः पवित्रमसि द्यौरसि पृथिव्यसि मातरिश्वनो धर्मोऽसि विश्वाधाऽअसि परमेण धाम्ना दृँहस्व मा ते ह्वार्मा यज्ञपतिह्वार्षीत्। (यजुर्वेद १/२)

ऊपर लिखे मंत्र का भावार्थ है:

वसोः पवित्रमसि अर्थात् यज्ञ करने से पवित्रता फैलती है। द्यौरसि पृथिव्यसि अर्थात् यज्ञ करते समय जो हवन सामग्री और घृत आदि हवन कुण्ड में  जलती हुई अग्नि में आहुति के रूप में श्रद्धा से डाला जाता है उस पदार्थ को अग्नि परमाणुओं से भी सूक्ष्म कणों में भी विभाजित करके सूर्य की किरणों में स्थिर करके वायु के साथ मिलकर देश-देशान्तरों में फैलने वाला है।

इस प्रकार जब वे सूक्ष्म तत्त्व सूर्य की किरणों और वायु द्वारा ब्रह्माण्ड में फैल जाते हैं तो मातरिश्वनो घर्मोऽसि हर प्रकार से आकाश की समस्त वायु को शुद्ध करता है। इस से सभी प्रकार की बीमारियां का नाश होता है। आगे कहा – यज्ञ संसार को सुख देने वाला और संसार का धारक है। अतः कहा परमेण धाम्ना यज्ञ उत्तम सुख सहित लोक के साथ बढ़ता है।

परमेश्वर ने पुनः आदेश दिया मा ह्वा: अर्थात् कोई भी मनुष्य यज्ञ का त्याग न करे। ते यज्ञपति: मा ह्वार्षीत् अर्थात् यज्ञमान, विद्वान् और प्रजा यज्ञ करना कभी न छोड़े। तो यह ईश्वर की आज्ञा वेदों में अनादि काल से चली आ रही है। वेद न सुनने के कारण जनता इस आज्ञा को भूल गयी है और यज्ञ किये बिना दुःख के सागर में डूब गयी।

क्योंकि यजुर्वेद मंत्र २/२३ में ईश्वर ने स्पष्ट कहा कि जो मेरा यज्ञ करना छोड़ देता है मैं (ईश्वर) उसे सदा दुःख देने के लिए छोड़ देता हूँ। आज दुनिया ने यज्ञ छोड़ा और दुखी है।

इसमें ज़रा भी संदेह नहीं कि ईश्वर वेद में बता रहें हैं कि यज्ञ ही मेरी पूजा है। इसके द्वारा हर सुख की प्राप्ति होती है जैसे धन, गाड़ियाँ, ऐश्वर्य, शान्ति, संतोष, इत्यादि।