स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य

ऋग्वेद मंत्र १०/५३/६ में ईश्वर ने सम्पूर्ण मनुष्य जाति को वेद मन्त्रों  का मनन-चिंतन करने का आदेश दिया है| महाभारत काल तक तो सबकुछ ठीक था| वेदमंत्रों का मनन-चिंतन, उच्चारण, विद्वानों का संग, अग्निहोत्र/यज्ञ के आयोजन द्वारा पृथिवी पर परम शांति थी|  इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड सर्ग ४ एवं महाभारत ग्रन्थ तथा अन्य ऋषि प्रणीत ग्रंथों के अध्ययन से ज्ञात होता है| किसी न किसी कारण से महाभारत युद्ध के पश्चात् मनुष्यों ने विद्वानों के आश्रय में रहकर वेदाध्ययन, अग्निहोत्र एवं यज्ञ आदि शुभ कर्मों का त्याग कर दिया और यहीं से वेद के ज्ञान का सूर्य अस्त प्रायः हो गया| जैसे सूर्य के बिना संसार में अन्धकार का राज्य रहता है उसी प्रकार वेद रूपी ज्ञान के सूर्य के छिप जाने से विश्व में पूर्ण रूप से अज्ञान छा जाता है| 

वेद ज्ञान के बिना हम ईश्वर के बताए शुभ मार्ग, उसके शुभ ज्ञान युक्त एवं कल्याणकारी आज्ञा व प्रेरणा नहीं जान सकते और मनमाने रास्तों पर चलकर तथा मनमाने कर्मों पर चलकर यह अमूल्य मनुष्य का जीवन नष्ट कर लेते हैं| जो कुछ मैं लिख रहा हूँ यह सब मुझे वेदों के ज्ञान से ही प्राप्त हुआ है| जैसे निम्नलिखित मंत्र में ईश्वर ने ज्ञान दिया यह वेद सुने बिना कहाँ से समझ आएगा। अतः हम वेद सुने और विद्वान व विदुषी बनें ऐसा मंत्र का भाव है|

यजुर्वेद मंत्र ४/१ मंत्र का भाव है – 

हे नर-नारियो! प्रभु कृपा से इस मनुष्य जन्म में विद्वानों के संग, सत्कारऔर दान को प्राप्त करके चारों वेदों के अध्ययन द्वारा विद्या, अन्नादि व धन की पुष्टि से दुःखों का नाश करें। इसी प्रकार यदि हम यजुर्वेद मंत्र १/१ का मनन चिंतन करेंगे तो सहज ही समझ आएगा कि हमारा जन्म यज्ञ के लिए ही हुआ है भौतिक कार्य तो बाद के हैं| 

मंत्र में कहा कि नित्य यज्ञ करने से पृथिवी व्याधि रहित  और संक्रामक रोगों से रहित हो जाती है| पशुपक्षियों की रक्षा यज्ञ करने से स्वतः ही हो जाती है, इत्यादि| सामवेद मंत्र ५५० में कहा कि द्रोह रहित होकर यज्ञ करें|   

सामवेद मंत्र १३७४ में ईश्वर ने आदेश दिया कि गृहस्थ मनुष्यों का धर्म है कि वह सब प्रकार की रक्षार्थ घर-घर में नित्य अग्निहोत्र करें| यहाँ यह कहना अनुचित न होगा कि जब तक नर-नारी पिछले युगों की भांति विद्वानों का आदर सत्कार करके उनसे वेदों का ज्ञान प्राप्त नहीं करते तब तक घर-घर से अविद्या का नाश एवं घर-घर से अनेक प्रकार की बीमारियों का अंत तथा शुद्धता संभव नहीं जैसा कि ऊपर के मन्त्रों  स्पष्ट है| देखें सामवेद मंत्र १५१ का कैसा सुन्दर भाव है! मंत्र में कहा – हे मनुष्यों! तुम यज्ञ में अपने बल से वृष्टिदेव को बढ़ाते हुए अर्थात् वर्षा का आह्वान करते हुए मनचाही आहुतियाँ छोड़ो और यज्ञ के अंत तक स्नान करते रहो| भाव है कि अधिक से अधिक आहुतियाँ डालने से यजमान् और संगत वायु में मिले वेदमंत्र और आहुतियों के गुण को अपने शरीर से स्पर्श करते हैं तथा वेद का ज्ञान कानों से सुनकर अमृत बनकर आत्मा तक प्राप्त होता है और घृत व अन्य जड़ी बूटियों की आहुतियाँ सोम का रूप लेकर सभी श्रद्धालुओं के शरीर के छूकर शुद्ध कर देती हैं मानो किसी ने स्वच्छ जल से स्नान कर लिया हो| अतः यज्ञ से स्वच्छता प्राप्त होती है और बीमारियों का नाश होता है तथा यज्ञ में ही ब्रह्मा के वचन सुनकर जीव ज्ञान और विज्ञान प्राप्त करता है|