स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल)
ओ३म् वाजस्येमं प्रसवः सुषुवेऽग्रे सोमं राजानमोषधीष्वप्सु।
ताऽअस्मभ्यं मधुमतीर्भवन्तु वयं राष्ट्रे जागृयाम पु॒रोहिताः स्वाहा।। (यजुर्वेद ९/२३)
यजुर्वेद मंत्र ९/२२ और ९/२३ में ईश्वर की आज्ञा है कि मनुष्यों को संसार में कैसे वर्तना चाहिए अर्थात् कैसे कर्म करना चाहिए। जैसे मंत्र ९/२२ में ईश्वर मनुष्यों को आज्ञा देता है कि हे मनुष्य! मैं तुझे कृषि के कार्य के लिए नियुक्त करता हूँ। तू कृषि से उत्पन्न अन्न आदि की रक्षा कर इत्यादि।
इसी तरह यजुर्वेद मंत्र ९/२३ का अर्थ है कि – हे मनुष्यो! जैसे मैं (अग्रे) पहले (प्रसवः) ऐश्वर्य से युक्त होकर (वाजस्य) ज्ञान द्वारा इस (सोमं) सोम के समान सब दुःखों का नाशक [भाव यह है कि समाधि में सोम रस का अनुभव करके योगी सब दुःखों का नाश कर लेता है] (राजानमं) विद्या, न्याय और विनय से गुणयुक्त राजा को (सुषुवे) उत्पन्न करता है। [भाव है कि यहाँ विद्या अर्थात् चारों वेदों का ज्ञान पाकर जब राजा न्याय करता है और प्रजा का दुःख सुनने का समय तथा विनयपूर्वक व्यवहार होता है जो कि राजा वेदाध्ययन और स्वयं की तपस्या से ग्रहण करता है तब ही वह राजा बनने के योग्य होता है।
इसी प्रकार राजा की रक्षा से देश में जो (ओषधीषु) औषधि, वनस्पति और यव अर्थात् जौ इत्यादि औषधियाँ जो पृथिवी पर उत्पन्न होती है। और (अप्सु) जो जलों में उत्पन्न होने वाली औषधियाँ है वो भी राजा की रक्षा से पूर्ण रूप से उत्पन्न हों और हमारे लिए (मधुमती:) पूर्ण रूप से मधुरता लिए हुए (भवन्तु) हों। भावार्थ यह है कि राजा किसानों का हितकारी होकर धन आदि से सभी प्रकार से मदद करता है तब अन्न, जल, वनस्पतियाँ, औषधियाँ आदि सब प्रजा को सरलता से सुलभ होती हैं।
मंत्र के तीसरे भाग का अर्थ है कि – जैसे (स्वाहा) सत्याचरण के द्वारा [यहाँ स्वाहा का अर्थ सत्याचरण है] (पुरोहिताः) सबके हितकारी [यहाँ पुरोहितं का अर्थ सब जनता का हित करने वाला मंत्री आदि सेवक] (वयं) हम मंत्री, राजनेता आदि सेवक लोग (राष्ट्रे) राज्य में सदा (जागृयाम) आलस्य रहित होकर पुरुषार्थी बनकर जनता से व्यवहार करें [यहाँ पुरोहित का अर्थ मंत्री, राजनेता आदि सेवक है क्योंकि इस मंत्र का देवता अर्थात् विषय जो है वह राजा है इसलिए पूरे मंत्र में राजा ही छाया हुआ है। अतः पुरोहित भी राजा के मंत्रियों से सम्बंधित हैं। परन्तु ऋग्वेद के पहले मंत्र में “अग्निमीऴे पुरोहितं” में मंत्र का विषय परमेश्वर है अतः ऋग्वेद के मंत्र में पुरोहित का अर्थ पुरियों की रक्षा करने वाला। यह संसार एक पुरी है जैसे जनकपुरी, विकासपुरी, आदि तो इतनी बड़ी पुरी जो संसार के रूप में है उसकी रक्षा करने वाले पुरोहित अर्थात् परमेश्वर की हम इच्छा करें।