स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल) (www.vedmandir.com)

परमेश्वर की पूजा थोपी नहीं जा सकती। अतः परमेश्वर की पूजा करने से पहले प्रमाण, तर्क-वितर्क आदि द्वारा यह जानना आवश्यक है कि परमेश्वर किसे कहते हैं, परमेश्वर का दिव्य ज्ञान, बल, और कर्म स्वरूप आदि क्या है? और ये सब कुछ जानने के लिए हमें वेदमंत्रों के प्रमाण की आवश्यकता है इसे नकारा नहीं जा सकता। क्योंकि जैसे ऊपर कहा यह प्रमाण अनादि व अविनाशी है। परमेश्वर के विषय में निन्मलिखित मन्त्रों का अवलोकन करें। अथर्ववेद मंत्र १३/४(२)/१६,१७,१८ में कहा –

न द्वितीयो न तृतीयश्चतुर्थो नाप्युच्यते।य एतं देवमेकवृतं वेद।।

न पञ्चमो न षष्ठः सप्तमो नाप्युच्यते। य एतं देवमेकवृतं वेद।।

नाष्टमो न नवमो दशमो निप्युच्यते। य एतं देवमेकवृतं वेद।।

भाव यह है कि परमेश्वर न दो है, न तीन है, न चार है, न पाँच है, न छ: है, न सात है, न आठ है, न नौ है, न दस है, परमेश्वर केवल एक ही है। ऋग्वेद मंत्र २/१२/४ का भाव है कि जो परमेश्वर प्रकृति से कई लोकों व पदार्थों की रचना करता है, उस परमेश्वर की ही उपासना करनी चाहिए और वह परमेश्वर एक ही है। ऋग्वेद मंत्र २/१२/६ का भाव है कि जो जगत् की उत्पत्ति, पालना और प्रलय करता है तथा जो चारों वेदों का ज्ञान देने वाला है, वह परमेश्वर है, उसकी उपासना करो। ऋग्वेद मंत्र ६/५०/१४ में कहा (अजः) ईश्वर जन्म-मरण से रहित है इसलिए अवतार नहीं लेता अर्थात् वह कभी उत्पन्न नहीं होता।

(एकपात्) अर्थात् परमेश्वर का जगत् में एकपाद है। जैसा की यजुर्वेद मंत्र ३१/४ में कहा (अस्य पाद: इह अभवत् पुनः) अर्थात् परमेश्वर का एक पाद इस जगत में बार-बार प्रकट होता है। भाव यह है कि परमेश्वर न जन्म लेता है, न मृत्यु को प्राप्त होता है, वह अपरिवर्तनीय है| उसके एकपात् अर्थात उसकी अनंत शक्ति के चतुरांश मात्र से इस सम्पूर्ण विश्व की रचना होती है।

परमेश्वर निराकार है परन्तु सर्वशक्तिमान परमेश्वर ऋग्वेद मंत्र १०/४८/७ में कहता है कि (एकः निष्षाट् इदम् अस्मि) अर्थात मैं अभिभूत करने वाला परमेश्वर अकेला होकर भी (एकम् अभि) एक निन्दक/नास्तिक (द्वा अभि) दो (त्रयः किम्-उ करन्ति) तीन अथवा अनेक नास्तिकों/निंदकों/पापियों के वर्ग मेरा क्या करेंगे। मैं उनको भी दण्ड देता हूँ। पुनः मंत्र में परमेश्वर है कि जैसे युद्ध भूमि में अनेक सैनिक हताहत हो जाते हैं अथवा जैसे खलिहानो में रखी फसलों के पूलों (गठरी) को चूर-चूर कर दिया जाता है, उसी प्रकार परमेश्वर नास्तिकों/निंदकों/पापियों को दण्ड देकर नष्ट कर देता है – चूर-चूर कर देता है।