स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल) (www.vedmandir.com)

पृच्छे तदेनो वरुण दिदृक्षूपो एमि चिकितुषो विपृच्छम्।

समानमिन्मे कवयश्चिदाहुरयं ह तुभ्यं वरुणो हृणीते॥ (ऋग्वेद ७/८६/३)

(वरुण) हे परमात्मा! (पृच्छे) मैं आप से पूछता हूँ कि (तत्) वह (एनः) पाप कौन से हैं जिस कारण मैं आपसे दूर हूँ। मैं (उपो, दिदृक्षु) आपके दर्शन का इच्छुक हूँ। मैं (चिकितुषः) बन्धनरहित होकर (एमि) आपको प्राप्त होऊँ।

(यह तो सर्वविदित है) कि जब तक पिछले जन्म के और इस जन्म के पाप नष्ट नहीं होंगे तब तक ईश्वर प्राप्ति असंभव है। प्रत्येक वेद में यह स्पष्ट उपदेश है कि ठीक प्रकार से नित्य ईश्वर की पूजा करने से अर्थात् नित्य नाम-जाप, योगाभ्यास, अग्निहोत्र/यज्ञ, काम, क्रोध आदि सभी बुराइयों पर संयम रखने का नित्य कठोर अभ्यास इत्यादि करने से पापों का नाश होता है और फिर यह कठोर साधना नित्य प्रतिदिन बढ़नी चाहिए।

यदि हम देव योनि में प्रवेश कर जाते हैं तो निश्चित ही ऊपर कही साधना द्वारा हमारे पापों का नाश अवश्य हो जाता है चाहे अगले जन्म में हो या इस जन्म में हो क्योंकि वैदिक साधना द्वारा हम अर्थात् जीवात्मा अन्य योनि में नहीं भटकते। अतः साधक को पाप-वृत्ति त्याग देनी चाहिए और अब के पापों का नाश करने के लिए नित्य वैदिक साधना करनी चाहिए। इसमें वेद सुनना भी अनिवार्य है।

हे परमेश्वर! (कवयः) ऋषि, मुनि, योगीजन (विपृच्छं) ठीक-ठीक पूछने पर (समानं) आपके विषय में (मे) मुझको (चित्) निश्चयपूर्वक (आहुः) यह कहते हैं, (ह) प्रसिद्ध है कि (अयं) यह (वरुणः) सर्वशक्तिमान् परमात्मा (तुभ्यं) तुम उपासकों को (इत्) निश्चय करके (हृणीते) पापों से नष्ट करके सुख देना चाहता है। (यह ठीक है कि प्रत्येक विद्वान् जिज्ञासु को यही शिक्षा देता है कि परमेश्वर सबका कल्याणकारी है और यदि श्रद्धा से उसकी वेदानुसार उपासना जो कोई भी करता है वह उसको इस भवसागर से पार लगा देते हैं – मोक्ष प्राप्त कराते हैं। अतः गृहस्थाश्रम में रहकर जीव ईश्वर की विधिपूर्वक वेद अनुसार कठिन उपासना भी करें। गुरुकृपा से ऐसे साधक का कल्याण होता है।