वेद अनंत ज्ञान के भंडार हैं।  कल किसी चीज का वर्णन था, आज किसी और चीज का वर्णन चल रहा है।  

ओ३म् विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत॥ (ऋग्वेद मंत्र २/४१/३)

जो विद्यार्थी विद्वान् से पढ़ते हैं, वे विद्वानों से यह कहे कि हे आचार्य! आप इधर आइए और सबसे उत्तम आसन पर विराजमान होइए। 

आपने हमें वेद व शास्त्र पढ़ाए हैं। उनसे हमारी परीक्षा लें कि हम कितना उनको समझे हैं और क्या ये  हमारे आचरण में हैं?  यह परीक्षा जो स्कूलों आदि में चल रही है यह भी तो वेद की ही देन है।  जो योगी जन पढ़ाते हैं वह कभी भी प्रश्न करें और देखें कि जो  विद्यार्थी विद्या पढ़ रहा है, वह गंभीरता से पढ़ रहा है कि नहीं।  बुद्धि तेज करनी है, विद्या प्राप्त करनी है तो ईश्वर यह बता रहा है कि ज्ञान विज्ञान को जानने वाले महापुरुषों  की सेवा करो।  सबसे महान तो ईश्वर है उसके बाद ऋषि-मुनि है।  इनकी सेवा करने से बुद्धि तीव्र होगी और वे भी विद्वान हो जाते हैं। 

ओ३म् तीव्रो वो मधुमाँ अयं शुनहोत्रेषु मत्सरः। एतं पिबत काम्यम्॥ (ऋग्वेद मंत्र २/४१/१४)

विद्वानों की सेवा करने वाले विद्वान हो जाते हैं। उनके पास बैठकर शिक्षा ले लेते हैं और आचरण करते हैं। अच्छे विद्यार्थी काम, क्रोध आदि सब पापों का उनके प्रभाव से त्याग कर देते हैं। विद्वानों की सेवा  ईश्वर ने बहुत गंभीरता से बताई है।

आप: भी ईश्वर का नाम है आप रोज इसकी आहुति डालते हो। आकाश भी ईश्वर का नाम है – खं ब्रह्म। सूर्य भी ईश्वर का नाम है। ईश्वर का ज्ञान हो रहा है। उस के नामों के द्वारा उसकी स्तुति हो रही है।