थोड़ा चिंतन चलता रहे तो अच्छा होता है। हमें यह समझना पड़ेगा कि जिसकी विद्या के बिना यथार्थ ज्ञान नहीं जाना जाता। ज्ञान भी, विज्ञान भी, साइंस वगैरा – ना भौतिकवाद और ना अध्यात्मिकवाद, नहीं जाना जाता, वो ईश्वर है। उसकी विद्या वेद है। वेद के बिना कुछ नहीं जाना जाता । पूरी तरह से जो हम भौतिकवाद की तरफ जा रहे हैं। इस भौतिकवाद और साइंस उसके बारे में आपने यजुर्वेद के ४०वें अध्याय में सुना। और गहराई से समझते रहो और अगर समझ न आए तो मुझसे पूछते रहो।

ओ३म् अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽस॑म्भूतिमु॒पास॑ते। ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॒ सम्भू॑त्यां र॒ताः ॥ (यजुर्वेद मंत्र ४०/९)

असम्भूति (साइंस) की तरफ जा रही है दुनिया। तो यह साइंस भी याद रखो – बिजली की हो, एटॉमिक एनर्जी की हो, जिस मर्जी की भी हो, यह भी वेदों से ही निकली है। हमारी नालंदा यूनिवर्सिटी में ऋषियों ने हाथों से लिख लिख कर के यह साइंस भरी पड़ी थी। अंग्रेज भी आए, और भी आए, दुनिया आई है यहां पर, दुनिया राज कर गई हिंदुस्तान पे। यहां से हीरे, जवाहरात, साइंस, वेद ये चुराकर लेते गए। तो एक-एक चीज कितनी गहरी है भगवान की कि वह ‘परमेश्वर’ है उसकी बनाई विद्या ‘ वेद’ है। तो  वेद के बिना सुने कुछ भी नहीं जाना जा सकता।

सीधी सी बात है कि, हे मनुष्य! (सुनो मनुष्यों) उसकी विद्या के बिना, नहीं जाना जा सकता। उसी परमेश्वर  ने जो है, जमीन से लेकर आकाश तक सब कुछ रच डाला, कमाल कर डाला, प्रकृति से रच डाला। 

अब तो आप विज्ञान जानते हो ना कि प्रकृति से  रजोगुण ,तमोगुण ,सतोगुण से सारा संसार रच डाला। तो जिस ने सृष्टि बनाई है तो विद्वान लोग कह रहे हैं मनुष्यों से – हे मनुष्यों!  हम उसी की पूजा करते हैं, जिसकी यह विद्या है वेद, जिससे वेद निकले हैं, और जिसने यह भूमि आकाश सब रच डाले। जिसने रच डाले हम उस परमेश्वर की पूजा करते हैं।आप भी उसी परमेश्वर की पूजा करो जिसका वर्णन वेदों में है,और जिसने सारी सृष्टि बनाई। तो यह जरा जरा सी बातें हैं लेकिन इतनी गहरी हैं कि समझने के लिए बहुत जबरदस्त है।

ओ३म् अप न: शोशुचदघमग्ने शुशुग्ध्या रयिम्। अप न: शोशुचदघम् ॥ (ऋग्वेद मंत्र १/९७/१)

इस मंत्र का मैं अर्थ हर साल ही कर देता हूँ। इसका धीरे-धीरे अर्थ आप करो।

न: मतलब हमारे, अघम मतलब पाप, (अप, शोशुचत्) आप निवारण करें।

हे परमेश्वर! आप हमारे पाप निवारण करें दूर करें। तो इसमें गुरू के लिए भी प्रार्थना है, परमेश्वर के लिए भी प्रार्थना है, और जो राजा है उसके लिए भी प्रार्थना है तीनों के लिए। 

1.राजा तो इसलिए कि वह प्रजा को  समझाएँ और पढ़ने की व्यवस्था करें । जैसे पहले गुरुकुल में वेद थे वैसे ही आज स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में वेद सुनाए जाएँ। यह राजा का कर्तव्य है। 

2.परमेश्वर तो सर्वशक्तिमान है। हम उसकी पूजा करें जैसे वेदों ने कहा तो वह हमारे पापों को यज्ञ के द्वारा नष्ट करेगा।

3.तीसरा है विद्वान जो गुरू है। उसके बिना तो कुछ भी नहीं हो सकता। गुरू के बिना आप यह वेद सुन ही नहीं सकते। वेद का ज्ञान हो ही नहीं सकता।

यह तीनों से प्रार्थना है कि हमारे पापों को दूर करिए, निवारण करिए। राजा तो व्यवस्था करें, आलस को दूर करें। यह चेक करें कि कोई आदमी बैठ कर तो नहीं खाता और जो बैठकर खाता है उसको अरेस्ट करें। यह वेदों में स्पष्ट कहा है कि जब आलसी होंगे तो भीखमंगे भी होंगे। फिर यह भीख के लिए मना किया है। परमेश्वर ने वेदों में कहा है कि मेहनत करो मांगते क्यों हो?

(रयिम् आ शुशुग्धि) आप हमारे पापों को दूर कीजिए। हमारे धन को शुद्ध बनाइए। हम यज्ञ भी करें, मेहनत की कमाई भी करें, शुद्ध धन घर में लाएँ और जो हमारे (अघम्) पाप – मन, वचन और शरीर से पाप किए हुए हैं, (अप शोशुचत्) उनसे शुद्धि कराइए। शुद्धि कराने का एक तरीका है कि हमें दण्ड दो जिससे कि हम पाप मुक्त हो जाएं और हम पुरुषार्थी बने। तो यह बार-बार यही चल रहा है – अप न: शोशुचदघं। इसका भाव यही है कि हमें पापों से दूर कर दो। हमें बचाइए ,हमें दण्ड दीजिए, हमारे पापों का नाश करिए । हम पुरुषार्थी बने । तो यह तीनों से प्रार्थना की गई है। तो ईश्वर तो यज्ञ में प्रार्थना सुनता ही है। गुरू के बगैर कुछ नहीं है। अब रह गया राजा वह भी वेद विद्या की व्यवस्था करें।