एक मंत्र रोज जरूर सुना करो। यह भगवान ने जो ज्ञान दिया कि जो मनुष्य माता पिता के साथ अच्छे कर्म करता है, जो मनुष्य विद्वान के जैसे कर्म करता है.. यहाँ यह ज्ञान है कि विद्वान की तरह जब कर्म करेगा उसको विद्वान से ज्ञान मिलेगा। 

विद्वान तो आचरण को मानते हैं। जो आप सुनते हो वो आपका तप है। अगर वेद  सुनते हो और व्याख्या सुनते हो तो तप है। अगर आचरण में लाते हो तो आप विद्वान अथवा विदुषी बनते हो। इसलिए आचरण करो। 

यह शायद महाभारत की दंतकथा है।  यह महाभारत में तो पढ़ी नहीं है।  गुरु ने पाठ पढ़ाया –  ‘सत्यं वद, धर्मं चर।’  दूसरे दिन  उन्होंने पूछा तो सबने सुना दिया लेकिन युधिष्ठिर ने नहीं सुनाया और पिटता रहा।  ३ दिन के बाद उसने जब गुरु को सुनाया  तो उन्होंने पूछा  कि इतना भी क्यों याद नहीं रखते हो?  फिर  युधिष्ठिर ने कहा कि मैं प्रैक्टिस कर रहा था और आगे से मैं जीवन भर सत्य ही बोलूंगा और धर्म पर चलूंगा। गुरु ने उसे गले से लगा लिया। आगे चलकर युधिष्ठिर जीवन में धर्म राज बना।

तो हमेशा सत्य बोलो। खुद जीवन भर सच बोलना। अगर ऐसा करोगे तो योग शास्त्र में जैसे कहा जो सत्य को बोलता है उसके वाक्य सत्य हो जाते हैं। जो बोलता है वो सत्य हो जाता है। 

जो मनुष्य यह आचरण में लाता है वह विद्वानों के समान कार्य करता है। सब शास्त्रों को जानने  वाला ऐसा विद्वान होता है उसके समान उठना, बैठना, चलना, साधना इत्यादि ऐसा कोई करता है,  और दूसरा यह भी होना चाहिए कि माता-पिता का सत्कार करने वाला हो।  ऐसा मनुष्य नर नारी जो है पृथ्वी और सूर्य के समान उत्तम गुण वाले होते हैं।  साथ रहने से ज्यादा अभ्यास हो जाता है।

फिर ईश्वर बड़ी मदद करता है। सबसे बड़ी बात है कि गुरु से मुख से सुना और आचरण में लाना और सेवा करना। अब देखो कि ऋग्वेद मंडल ३  में भी  विद्वान्: की प्रशंसा चल रही है। ईश्वर विद्वान के गुण बोलते जा रहे हैं।  

भौतिकवाद में देखो आपका बच्चा अगर स्कूल नहीं जाएगा और अध्यापक से नहीं पढ़ेगा तो उसको कुछ भी नहीं आएगा।  भौतिकवाद में भी यही नियम है।  आध्यात्मिकवाद में और भी ज्यादा नियम है कि सावधान होकर, जिज्ञासु होकर, वेद के इच्छुक, सेवा करते हुए, गुरु के आश्रम में रहकर, विद्या प्राप्त करें। जितना भी वेद सुन लिया, उसे आचरण में ले आए और जितनी अधिक सेवा कर ली, आप देव योनि में आओगे  और अगले जन्म में गुरु कृपा से आपकी मुक्ति हो जाएगी। आनंद से रहो।  यज्ञ जरूरी होता है। नहीं तो यज्ञ के बिना यह वचन नहीं मिलते हैं।