ओ३म् स रोचयज्जनुषा रोदसी उभे स मात्रोरभवत्पुत्र ईड्यः। 

हव्यवाळग्निरजरश्चनोहितो दूळभो विशामतिथिर्विभावसुः॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/२/२)

ईश्वर ने यहां यह ज्ञान दिया है कि ब्रह्मचर्य रखकर विद्या और सुशिक्षा  प्राप्त करो।  ब्रह्मचर्य पर बड़ा ध्यान रखो। जो पुस्तक मैंने ब्रह्मचर्य की लिखी है वह सब को बहुत ध्यान से बार-बार पढ़नी चाहिए। ब्रह्मचर्य से और विद्या से, उत्तम शिक्षा वेदों से लेकर फिर इस तरह संतान प्राप्त होती है –  पुत्र पुत्री होते हैं। 

वह जो भूमि और आकाश के बीच विराजमान सूर्य है वह संतान सूर्य के समान सबकी हितकारी होती है।  यही शिक्षा हम देते हैं कि ब्रह्मचर्य धारण करो और गृहस्थ में संतान प्राप्त करो। विकार के लिए गृहस्थ नहीं है। आज की दुनिया यह बात को नहीं समझ रही है।