अन्न दान कितना महान है। यह चलता रहे।  जितने भी यहाँ आए वह भोजन करके जाएं। जो ना आ सके उनके लिए भी लेकर जाएँ।  जो दूर रहते हैं उनके लिए घर भी ले जाओ।

ओ३म् धारावरा मरुतो धृष्ण्वोजसो मृगा न भीमास्तविषीभिरर्चिनः। 

अग्नयो न शुशुचाना ऋजीषिणो भृमिं धमन्तो अप गा अवृण्वत॥ (ऋग्वेद मंत्र २/३४/१)

जो जो मंत्र व्याख्या में आते हैं उनको जिज्ञासुओं  को नोट करना चाहिए। आपके कानों में अमृत तो जा रहा है। इनको याद करके अगर दूसरों को भी समझाए तो, पिछले मन्त्रों में आया था, कि वह महान हो जाता है। बात करें प्यार से और लड़ाई बिल्कुल ना करें। दूसरों को समझाने की कोशिश करें।  

भगवान ने वेदों में हर विषय दिया है।  अगर हमारे देश में वेद का प्रचार  पहले जैसे रहता तो यज्ञ से और अग्निहोत्र से पृथिवी, इसकी नदियाँ समुद्र आदि सब शुद्ध होते और सब मनुष्यों के दिमाग भी शुद्ध रहते। काम क्रोध आदि आता है भी नहीं। व्यभिचार भी नहीं होता। कुछ भी बुराई नहीं होती। 

इस मंत्र में सबसे बड़ी बात है कि वैद्य लोग किसी को जान से नहीं मारे। उनको जीवन दे।  कितने  गलत-गलत केस हुए हैं  कि कहीं किडनी निकाल दी, कहीं कुछ निकाल कर मार दिया।  यह लोग वेद नहीं जानते  कि हमने दुष्कर्म कर दिया पर ईश्वर  की नजर तो सब पर है और ईश्वर इस जन्म में और ज्यादातर अगले जन्मों में दंड देता है। ईश्वर अगले जन्म में दंड देता है तो लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे पाप कर रहे हैं।

मान लिया अभी पाप करें और ईश्वर भी अभी दंड दे रहा हो (जैसे अभी चांटा  मारे, उसका सारा धन छीन ले) तो लोगों को पता चले कि ईश्वर दंड दे रहा है। यह बात भी हम भी तो देख सकतेहैं कि हॉस्पिटल में कितनी बीमारियाँ हैं, भुखमरी है, अमीरी गरीबी है, दुष्कर्म हैं आदि।  यह सब बुरे कर्मों का फल ही तो है। अब जो कर्म कर रहे हैं वह अगले जन्म में हम ऐसे ही भोगेंगे अगर हमने बुरे कर्म किये हैं। हमको ईश्वर के नियमों से डरना चाहिए। 

यह वैद्य लोग हैं (डॉक्टर) राज्य और न्याय के आधीन रहें (administration के आधीन रहें)।अन्याय से किसी से कभी पैसा ना ले। भ्रष्टाचार (corruption) ना करें। देखने में आता है कि वर्ल्ड लेवल में डॉक्टर लोग ज्यादा पैसे लेते हैं।  यहाँ भगवान ने मना किया है। अगर कोई भ्रष्टाचार करता है तो ईश्वर ने बहुत बुरा दंड देना है। ये लोग किसी को ना मारें। 

दिल्ली के पास एक केस आया था कि किडनी निकाल लेते थे और मार देते थे। मान लिया पहले की तरह वेद लागू हों तो ये पाप फ़ौरन बंद हो जाएंगे। मनुष्यों की नहीं ईश्वर की शिक्षा जो वेद में है जो विद्वान लोग सुनाते हैं उस पर चलें।  आदमी की शिक्षा नहीं चाहिए। मनुष्या: अनृतं वदन्ति – मनुष्य झूठ  भी बोलता है और स्वार्थी भी होता है।