Swamiji conducting Yajyen

वाल्मीकि जी ने यह बात वाल्मीकि रामायण में लिखी है कि “ना निरग्निः” (वाल्मीकि रामायण १-६-१२)। पिछले जमाने में कोई घर नहीं था जहां अग्निहोत्र ना होता हो। सब मिलकर हवन करते थे और सब सुखी थे। जो भी सेवक बिछड़ गए हैं, सब बहुत अमीर होकर गए हैं। वह सब सेवा का धन लेकर गए हैं।

गुरु का शब्द मान अयाने, भक्ति बिना बहुत डूबे सयाने। गुरु भक्ति, परमेश्वर की भक्ति, माता-पिता की भक्ति महान है। देवों का देव महादेव ईश्वर, गुरु भक्ति से मिलता है।  इंसान अकेला आएगा अकेला जाएगा। बहुत सारा लेकर आता है और यहाँ से बहुत कुछ लेकर जाता है। जो लेकर आते हैं वो प्रारब्ध है। इतने शुभ कर्म करो की कर्मों में आग लग जाए। 

गुरु नानक देव साहब ने अपने शिष्य दुनीचंद को, जब वह भोजन करा रहे थे, यह कहा कि मौत के बाद इस सुई लेते आना और मैं वहां उसको ले लूँगा। कहा कि जब मैं मर ही जाऊँगा तो इसको कैसे लेकर आऊँगा? 

गुरु महाराज ने बोला कि सुई नहीं साथ ले जा सकते हो  तो इस दौलत को कैसे ले जाओगे?  इसके बाद शिष्य की आँखें खुल गई और उन्होंने वह धन भक्ति में लगाना शुरू किया। मन के हर मंत्र में (A  to Z) अमृत भरा पड़ा है। सुनता सुनता अमर हो जाता है।  सब बंधुओं से छूट जाता है।  यज्ञ अग्निहोत्र यह बहुत कर्मों को काटता है अगर आप सच्चाई से आहुतियाँ डाल रहे हो। फिरअगला जन्म देवयोनि में होकर सफल हो जाता है।  तुम्हारा अगला जन्म योगियों के कुल में हो जाता है।  गर्भ में ही पहले दिन से  जीवात्मा वेद सुनती रहती है।  फिर अगला जन्म और अच्छा होकर मोक्ष हो जाता है।  मोक्ष चाहिए।

ओ३म् रासि क्षयं रासि मित्रमस्मे रासि शर्ध इन्द्र मारुतं नः। 

सजोषसो ये च मन्दसानाः प्र वायवः पान्त्यग्रणीतिम्॥ (ऋग्वेद मंत्र २/१/१५)

एक से एक मंत्र जो हैं जो आनंद और सुख देने वाले हैं।  भगवान कहते हैं कि विद्वान के बिना कुछ समझ में नहीं आएगा।  यहां देखो कितना अच्छा भाव है कि जैसे अग्नि के गुण हैं, और वह  सबको सुख देती है। अग्नि विद्या को हम सीखते हैं। यज्ञ करते हैं। अग्निहोत्र करते हैं। जब शुरू में वेद का ज्ञान निकला तो हमने अग्नि के गुण जाने कि इसी से भोजन बनाओ, मोटरसाइकिल बनाओ, यज्ञ भी करो आदि। अग्नि का लाभ लो। हम सब ने अग्नि का लाभ लिया। युद्ध में भी अग्नि काम आ रही है।  

वैसे ही विद्वान हैं। उनमें भी ईश्वर ने बहुत गुण बताए हैं। उनमें भी अनंत गुण है।  उनमें वेद अंदर से निकलते रहते हैं, रोज़ाना निकलते रहते हैं। विद्वानों की सेवा करें। जैसे अग्नि से हम सुख ले रहे हैं और  जैसे उसके गुण जानते-जानते सुख मिलता है, ईश्वर कहता है कि वैसे विद्वान को भी जानो। उनके गुणों को जब तुम जान जाओगे तो विद्वान से अलौकिक सुख प्राप्त होता है। सब यह परंपरा  शुरू से चली आ रही है। इसमें अलौकिक सुख है।

ओ३म् ये स्तोतृभ्यो गोअग्रामश्वपेशसमग्ने रातिमुपसृजन्ति सूरयः। 

अस्माञ्च तांश्च प्र हि नेषि वस्य आ बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥ (ऋग्वेद मंत्र २/१/१६)

हम जो हैं हे (अग्ने) विद्वान्! आप (ये) जो (सूरयः) विद्या ज्ञान चाहते हुए जन (स्तोतृभ्यः) समस्त विद्या के अध्यापक विद्वानों के लिए (गोअग्राम्) जिसमें इन्द्रिय अग्रगन्ता हों (अश्वपेशसम्) उस शीघ्रगामी प्राणी के समान रूपवाली (रातिम्) विद्यादान क्रिया को (उपसृजन्ति) देते हैं। 

(तान् च) उनको और (अस्माञ्च) हम लोगों को भी (वस्यः) उत्तम निवासस्थान (आप्रनेषिहि) अच्छे प्रकार उत्तमता से प्राप्त करते हो इसी से (सुवीराः) उत्तम शूरतादि गुणों से युक्त हम लोग (विदथे) विवाद संग्राम में विजय प्राप्त करते हैं। यह विद्वानों की बात कही गई है।

हे मनुष्यो लोगो सुनो! जैसे विद्वान् सर्वोत्तम विद्यादान देते हुए (सबसे उत्तम विद्या वेद है और उसमें सारे विषय हैं) हमको विद्वान् और विदुषी बना देता है। वह मूर्खों को ज्ञानी बना देता है। भगवान का तो सारा ही कार्य है। उसने वेद दिए लेकिन भगवान् किसी को विद्वान् नहीं बना सकता क्योंकि खुद भगवान् कह रहा है कि मैं बोल नहीं सकता। वेद मेरे हैं। वेदों के बिना कोई विद्वान् नहीं बन सकता। विद्वानों के अंदर से ईश्वर के द्वारा वेद नहीं निकलेगा,अगर विद्वान् वेद नहीं सुनाएंगे, तो आगे विद्वान नहीं तैयार होंगे। सभी मूर्ख रह जाएंगे।  

जैसे विद्वान सबको विद्या देखकर विद्वान कर देते हैं वैसे हमारे द्वारा भी सदा हमारी सेवा से विद्वान आनंदित रहें। अगर नाराज़ हो गए तो फिर हम गए काम से। भगवान ने एक ही source बनाया है – वेद। वेद भी बाद में हैं, पहले विद्वान है। वेद कोई लिखी हुई किताब नहीं है। वेद तो विद्वान् है, वेद तो ईश्वर है। विद्वान् है तो वेद हैं। विद्वान् है तो ईश्वर है। हमें भी उन्हें बहुत प्रसन्न रखना चाहिए। 

विद्वानों की यह बात ध्यान रखो कि आलसी से कोई भी कार्य अच्छा नहीं होता है। उनका कोई कार्य संपन्न भी नहीं होता है। इसलिए मैं बार-बार समझा रहा हूँ कि जीवन में कभी आलसी मत बनो। समय अश्व के समान निकल जाएगा और आलसी पीछे रह जाएगा। मृत्यु आ जाएगी और वह पितृ योनि में फँस जाएंगा और प्रकृति में फँस जाएगा इसलिए पुरुषार्थी बनो और आलसी कभी न बनो। 

भजन में आवाज कुछ नहीं होती, भाव होते हैं और सच्चाई होती है।