यज्ञ का पूरे विश्व को लाभ है।  जिन्होंने यज्ञ रखा है उनको और भी ज्यादा लाभ है। अथर्ववेद में यह ज्ञान दिया गया है कि जो यज्ञ की दक्षिणा नहीं देता उसका यज्ञ कराने का और आहुतियों  का पुण्य खत्म हो जाता है।  मेरा कोई ऐसा बेटा-बेटी नहीं है जो दक्षिणा नहीं देता है। इसलिए यज्ञ में सबको लाभ है।  इस दुनिया में हमारा एक ही काम है कि हम भौतिकवाद के साथ साथ आध्यात्मिकवाद का भी समय दें क्योंकि हमारा शरीर ही यज्ञ के लिए मिला हैI भाव यह है कि हम ईश्वर-भक्ति के लिए ही पैदा हुए हैं।  इसलिए जन्मदिन पर, या किसी भी अवसर पर यज्ञ विशेष है।  

वेद के मंत्र बहुत प्यारे लगते हैं। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ३ टाइम का यज्ञ रखूँ। ईश्वर से प्रार्थना कर दी है देखते हैं अब वह कब पूरी करता है।  ईश्वर कहता है कि किसी भी भाषा में गुणगान करो।  सबसे उत्तम  गुणगान तो वेद की व्याख्या करना है। ईश्वर कहता है कि ईश्वर किसको कहते हैं। ईश्वर ने कैसे सृष्टि रची। ना जाने कितने अनंत ज्ञान हैं सबको बताओ।  जिसको भी गुरु भक्ति है उसी को सुख है।  ईश्वर जो कह रहा है वह नहीं मान रहे हैं इसलिए सारा संसार दुखी है।  

ओ३म् इमं नो यज्ञममृतेषु धेहीमा हव्या जातवेदो जुषस्व। 

स्तोकानामग्ने मेदसो घृतस्य होतः प्राशान प्रथमो निषद्य॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/२१/१)

इस मंत्र में ईश्वर कह रहा है कि जैसे अन्न है व जल है। आज के युग में भी  जिसको भोजन नहीं मिल रहा है उसको अगर कोई भोजन देता है तो भोजन देने वाला उसको प्रिय लगता है क्योंकि वह भोजन दे रहा है। आज  भी कई अपने मालिक की इज्जत व रक्षा करते हैं क्योंकि वह उनको भोजन और सारी सुविधाएँ दे रहा है।

अन्न, जल आदि का दाता पुरुष दूसरों को बड़ा प्यारा लगता है, अच्छा लगता है। वह दिल से दान कर रहा है। क्योंकि अंदर ही टेलीपैथी है  कि जिसको आप प्यार करोगे वह प्यार अंदर से पहुंच जाता है और वह भी प्यार करने लगेगा। वैसे ही जिससे आप द्रोह करोगे तो वैसे ही होता है। यह ईश्वर का फंडामेंटल लॉ (मौलिक कानून) है। 

ईश्वर कह रहा है कि वैसे ही  दूसरों को विद्या, सुशिक्षा और धर्मज्ञान देने वाला, जो धर्म, वेद व योग विद्या के जिज्ञासु है उनको वह प्रिय लगता है। मतलब आचार्य उनको प्रिय लगता है।  जैसे अन्न देने वाले उनको प्रिय लगते हैं वैसे ही जिज्ञासु को गुरु प्रिय लगेगा। अगर अन्न का दाता अन्न नहीं देगा तो आदमी दुखी होकर मर जाएगा। वेद का ज्ञाता अगर वेद की विद्या नहीं देगा तो आदमी सुख के बिना मर जाएगा।  यह शिक्षा धारण करो कि विद्वान का संग चाहिए। 

देखो इस मंत्र में कितना  ज्ञान है।  ईश्वर कह रहा है कि कान खोलकर, अच्छी तरह से  एकाग्र वृत्ति से सुनो। मैं नहीं कह रहा।  मैं ईश्वर के नियम सुना रहा हूँ। 

ईश्वर कह रहा है कि ऋषि मुनि लोग,  योगी लोग यह जो आप लोग हैं, भगवान की स्तुति करते हैं।  ऋषि तो एकांत में बैठा हुआ भी करता रहता है।  या तो  ईश्वर की स्तुति  के लिए गायत्री मंत्र बोलता रहता हैI यह जो लोग हैं आपकी स्तुति करते हैं। गुरु की स्तुति बिरला ही कोई करता है।  यानी गुरु के गुणगान बिरला ही कोई करता है।  आधी जनता भ्रम में रहकर जिंदगी खराब कर लेती हैं। 

ओ३म् तुभ्यं स्तोका घृतश्चुतोऽग्ने विप्राय सन्त्य। 

ऋषिः श्रेष्ठः समिध्यसे यज्ञस्य प्राविता भव॥(ऋग्वेद मंत्र ३/२१/३)

आपकी भलाई के लिए देखो मैं बार-बार आपको बता रहा हूँ। अपनी प्रशंसा नहीं करता हूँ।  युधिष्ठिर को भीष्म पितामह बोल रहे हैं कि जो गुरु से शिक्षा ले लेता है पर आपस में व जगह-जगह उसके गुणगान व प्रशंसा नहीं करता है तो उसको भ्रूण हत्या का दोष लगता है।  भीष्म पितामह ने पाप भी  साथ ही बता दिया। भ्रूण हत्या का मतलब अबॉर्शन का बाप है क्योंकि वह गुरु की प्रशंसा नहीं करते हैं।  यहाँ भी यही कहा है कि जो आप स्तुति करते हो, आपकी जो स्तुति करते हैं उन्हें आप वेदों के अर्थ बताओ।  जो गुरु की प्रशंसा करता है वह वेद को सुनता है,  नोट करता है व याद करता है।  जो उनके पास आ जाते हैं उनको तो गुरु रोज ही पढ़ाएगा। तो वेद का ज्ञान बताओ जिससे वेद और यज्ञ की रक्षा हो।  गुरु की स्तुति के बिना वह भगवान की स्तुति नहीं मानता है।  तो डायरेक्ट भगवान की तो कोई स्तुति नहीं कर सकता है जब तक गुरु में श्रद्धा ना हो।