स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, द्वारा १९७८ से हर वर्ष किया जाने वाला चारों वेदों का यज्ञानुष्ठान आज (अप्रैल २६ , २०२० को) आरम्भ हुआ| स्वामीजी ने प्रवचन में कहा:

हम यज्ञ करते रहेंगे| चाहे दो महीने लगे चाहे तीन महीने लगें| पूर्णाहुति जब होगी तब आपको पता चल जायेगा| जब कोरोना का कर्फ्यू हट जाएगा तो श्रद्धालु बीच में भी आ सकते हैं| आज यह यज्ञ भगवान् ने प्रारम्भ करा दिया है सभी को प्राथना करनी चाहिए कि वो पूरा करा दे| पुण्य तो सुनने का है| 

ऋग्वेद के पहले मंडल का, पहले सूक्त का पहला मंत्र: 

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। 

होतारं रत्नधातमम्॥ (ऋग्वेद १/१/१)

जीवन में लाखों बार सुनो, करोड़ों बार – इसमें जो ज्ञान छिपा है वो आप लोगों पर लागु हो जाता है अगर आप बार बार सुनते हो| मन्त्र में कहा है – मैं ईश्वर की इच्छा करता हूँ| वो हमारी पुरियों का रक्षक है| हम लोग भी जैसे पुरी बना लेते हैं न जैसे विकासपुरी, जनकपुरी, इत्यादि| वैसे संसार भी एक पुरी है| इस पुरी की रक्षा करने वाला परमेश्वर है जिसने ये बनाई| हम सब जीवों की रक्षा करता है और फिर रक्षा के साथ पालना कर देता है| और उसके बाद संघार कर देता है| 

ये सारे काम निश्चित समय पर ऑटोमेटिकली अपने आप चलते रहते हैं| ईश्वर ने इसमें कुछ नहीं करना है| उसका सिस्टम ही ऐसा है| वो ऐसा बलशाली और बुद्धिमान है उसके समान न कोई हुआ है न कोई होगा| बड़ी श्रद्धा से ईश्वर का नाम लेवें| 

अग्नि ईश्वर का नाम है| अग धातु से अग्नि शब्द बनता है जिसका अर्थ है सबसे पहले| हर शुभ काम प्रारम्भ करने से पहले ईश्वर का नाम लो| कैसे लो? वो ऐसे नहीं जैसे दुनिया कहती है की ले लिया नाम, अगरबत्ती जला ली – नहीं|  ईश्वर  कहता है यज्ञ करो| वो यज्ञ जो है वो दुनिया का सबका परोपकार करने वाला है| अगरबत्ती जलाओगे तो न यह आपको लाभ देगी न दुनिया को| इसलिए जो महान सहिंता है, इससे जो वाक्य निकल रहें हैं वेद के, उनके एक एक अक्षर को देखते जाओ| 

यज्ञ चलना चाहिए| आपने यह मंत्र सुना – “यज्ञस्य देवं होतारं” – यज्ञ को देने वाला है| पृथिवी पर पहला ज्ञान आया ऋग्वेद और अग्नि ऋषि के ह्रदय में प्रकट हुआ| अब यह वेद पदार्थ विद्या को ज्यादा प्रकाशित करता है पर इसमें ब्रह्मविद्या भी है और यज्ञ विद्या भी है| भगवान् ने इस संसार में क्या बनाया इसका वर्णन वेद इस में है| यह पदार्थ विद्या बताता है – सोना, चांदी, कोयला, आदि हर प्रकार का ज्ञान ऋग्वेद में है| ऋग्वेद में १० मंडल हैं| इसमें अपार ज्ञान है| 

ईश्वर ने इसमें गुणों का प्रकाश किया है| इसलिए विद्वान लोगों को चाहिए की ऋग्वेद का प्रथम स्वं अध्ययन करें और फिर कराएं| ईश्वर द्वारा रचित सभी पदार्थों को यथावत जाने| इस ऋग्वेद में आपको ईश्वर से लेकर, सृष्टि के सभी पदार्थों की जानकारी है| सब पदार्थों का स्वाभाव – जैसे सूर्य का क्या स्वभाव है? गर्म है न? ऐसा चन्द्रमा का ठंडा स्वभाव है| सोने, पीतल, लोहे का क्या स्वाभाव है| जितने पदार्थ बने है संसार में सब का क्या प्रभाव है और क्या गुण है – यह ऋग्वेद ही बताता है| ऋग्वेद नहीं सुनोगे तो यह नहीं जान पाओगे कि किस पदार्थ का क्या स्वभाव है और उसका कैसा इस्तेमाल किया जाए|

जैसे जैसे ऋग्वेद चलेगा आप नोट करते रहो| नोट बनाना चाहो तो नोट बनाओ| यज्ञ किसको बोलते हैं? देवपूजा संगतिकरण दान| इसमें विद्वानों की पूजा, सत्कार और संग यह भी ऋग्वेद में बहुत दिया| 

(यज्ञस्य) यज्ञ से (होतारं) देने वाले| यज्ञ का देने वाले वाले विद्वानों के सत्कार, संगम – निवास-स्थान पर रहना, महिमा और कर्म को जानो| जो समाधिस्थ पुरुष हैं उनकी दिव्य कर्म को जानो| इन सबको देने वाला हमारा पुरोहित है जो उत्पत्ति के समय से पहले परमाणु आदि सृष्टि को धारण करने वाले वाले (रचना से पहले) था| वो प्रकृति ईश्वर ने अपने अंदर संभाल कर रखी थी| जीवात्माओं को भी आश्रय ईश्वर ने अपने अंदर दिया था| 

ईश्वर की शक्ति एक अंश काम करता है तो अरबों खरबों परमाणु बनने लगते हैं| वो दिखाई नहीं देते| उनसे जोड़-जोड़ कर ईश्वर की शक्ति से साकार सूर्य, चाँद, इत्यादि जो दिख रहा है वो बनते हैं| वह रचना करता है और फिर रक्षा करता है| 

होतारं – सब कुछ देने वाला| सबसे ज़रूरी है कि हम विद्वानों का सत्कार करें, उनकी महिमा को जानें उनके कर्म को जाने| इन सब को भी देने वाला (पुरोहितं) हमारी पुरिओं का हित करने वाला परमेश्वर सृष्टि को धारण करता है| वो परमवेश्वर उत्पत्ति के समय में बार-बार रचना करता है| उस परमवेश्वर की उपासना करो जो प्रलय में प्रकृति, सृष्टि और जीवात्माओं को संभाल के रखता है| उनकी रक्षा करता है नहीं तो कहीं वे बर्बाद जो जाएं, भटक जाएं| वो परमवेश्वर उत्पत्ति के समय सृष्टि को रचता है| उस सृष्टिरचयिता की पूजा करो| ऐसे परमेश्वर को छोड़ कर के कोई दूसरा परमवेश्वर न बनाओं| ऐसा परमवेश्वर न था, न है, न होगा| वो हमारा पुरोहित है| हमारी पुरिओं का हित करने वाला है| 

सब गुण भगवान् ने रचे हैं| ऋत्विजं – हर ऋतुओं में पूजनीय है| रत्नधातं – सोना, चांदी, आदि सब रत्नों को उसी ने धारण किया है| तुम्हें हम पुकारते हैं| हर किसी से महान इसकी पूजा करो|

ईळे – इस परमेश्वर की इच्छा करो| इसी की इच्छा करो| ईश्वर का स्वरूप वेदों से जानो| 

अग्निः पूर्वेभिर्ऋषिभिरीड्यो नूतनैरुत। स देवाँ एह वक्षति॥ (ऋग्वेद १/१/२)

देवों को प्राप्त होने वाला परमेश्वर| जो विद्वान पूर्वेभि: – पहले के विद्वान| यह सृष्टि बार बार बनती है बार बार बिगड़ती है| जो पहले की सृष्टि के विद्वान, और नूतनय: – जो आज के विद्वान है, जो ब्रह्मचारी हैं जो संहिता से वेद पढ़ते हैं और ऋषिभिः – और मन्त्रों के अर्थों को जानने वाले ऋषि| यानि पहले के विद्वान, आज के विद्वान, ब्रह्मचारी और ऋषि उनके अंदर मन्त्र प्रकट होते हैं| 

सबमें प्राण होते हैं| इनमें मंत्र प्रकट होते हैं तो इनमें प्राणायाम चलता रहता है| सभी ईश्वर की खोज करने योग्य हैं| दो प्रकार की अग्नि होती है – भौतिक अग्नि है और एक आध्यात्मिक है (परमेश्वर)| तो भौतिक अग्नि की भी खोज करो| सूर्य में अग्नि है, बिजली में अग्नि है, हम चुहले में जलाते है वो भी अग्नि है| इसी अग्नि से कारखाने चलते हैं| वहाँ पर क्या क्या नहीं बनता है| जो खोज कर सकता है वो इस अग्नि की भी खोज करे| इस अग्नि का हम कैसे उत्तम प्रयोग करें? हमारी गाड़ियाँ, ट्रेने, हवाई जहाज, मिसाइल, बम्ब, आदि इसी अग्नि से चल रहें हैं| अग्नि की शक्ति को जानना चाहिए पानी से बिजली बनती है| कितनी शक्ति होती है इस बिजली में? इस भौतिक अग्नि का भी लाभ लिया जाए जो की वैज्ञानिकों द्वारा लिया जा रहा है| लेकिन साथ में भगवान् कह रहें हैं कि जो की पहले बताया (ऋषिभि: आदि) इन्हें भौतिक अग्नि की भी खोज करनी चाहिए और साथ साथ ईश्वर की भी| नचिकेता इसी अग्नि का ज्ञान लेने के लिए अपनी गुरू यमराज के पास गया था जिस अग्नि का ज्ञान आप बरसों से यहाँ ले रहे हो|